जीतिया व्रत और उसकी महत्ता
डा. शिप्रा दीक्षित
जीवित अष्टमी या जीतिया का त्यौहार जो बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश समेत नेपाल में भी मनाया जाता है, को ‘जीवितपुत्रिका व्रत’ भी कहते हैं| भारत में कई त्योहार या व्रत प्रचलित हैं, जो माताएं अपने संतान या यूं कहीं पुत्र के लिए रखती हैं लेकिन जीवितपुत्रिका व्रत अपनी संतान के लिए किया जाता है, जिसमें पुत्र और पुत्री का अंतर खत्म हो जाता है| इसका सबसे बड़ा महत्व यही है कि बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में हमें संतान को लेकर बराबरी की झलक देखने को मीलती है| यह व्रत माताएं अपनी संतान की लंबी आयु और खुशहाली के लिए करती है, माताओं और गांव में प्रचलित मान्यताओं के अनुसार इसमें 1 दिन पहले सिर्फ एक समय भोजन किया जाता है, जिसमें तिरुई की सब्जी खाकर व्रत की शुरुआत की जाती है, उसके बाद से ही माताएं नीरा जल व्रत रहती हैं| इस व्रत में बरियार के पेड़ का पूजन होता है| बरियार के पेड़ की महत्ता इस व्रत में बहुत अधिक मानी गई है| ऐसी मान्यता है कि जिस प्रकार बरियार का पेड़ बहुत मजबूत और सीधा सशक्त खड़ा रहता है, उसी प्रकार माताओं का पुत्र भी हर परिस्थिति में मजबूती से खड़ा रहे और युद्ध के दौरान उसे वीरता नहीं बल्कि लंबी आयु मिले| फलस्वरूप बरियार के पेड़ को अपना पुत्र का परिचायक बनाकर उसे आलिंगन किया जाता है| उसे तिलक लगाया जाता है, उसका पूजन किया जाता है और वहीं पे माताएं प्रार्थना करती हैं कि, “हे बरियार के पेड़ तू जाके नागराज से लड़ाई कर और जीवित वाहन की तरह जीवित वापस आना”|

जहाँ तक मैं समझती हूँ अपनी संतान को कठोर से कठोर परिस्थिति में भी उसे दीर्घायु और शक्तिशाली बने रहने का आशीर्वाद है| अष्टमी के दिन पूरा दिन निराजली व्रत रहकर माताएं अपनी संतान की लंबी आयु की कामना करती हैं| अगले दिन जब तक नवमी नहीं चढ़ जाती तब तक व्रत जारी रहता है और कभी-कभी तो नवमी तिथि शाम को लगती है लगातार 24 घंटे की जगह 30 घंटे-35 घंटे का भी हो जाता है| पौराणिक कथाओं के अनुसार हमें दो-तीन कथाएं मीलती हैं|
इसकी शुरुआत जीवित पुत्र वाहन नागराज की कथा से शुरू हुई, जिन्होंने नागों की रक्षा के लिए अपना जीवन न्योछावर कर दिया था| एक अन्य प्रचलित कथा में एक चील और एक सियार इनकी कहानी है जिसमें चील व्रत के नियमों का पालन करती है और उसे पुत्र सुख प्राप्त होता है जबकि सियारिन नियमों को तोड़ देती है और उसके बच्चे जीवित नहीं रहते| चील और सीआरएन अगले जन्म में सगी बहनें बनती हैं| सियारिन को बच्चे होते तो हैं पर वह जीवित नहीं बचते, दूसरी तरफ चील जो कि नियम धर्म का पालन करके जीवितपुत्रिका व्रत को करती रहीं, उसके सुंदर और सवस्थ बच्चे होते हैं| यह देखकर सियारिन चील से पूछती है कि “हैवानियत मेरे बच्चे बचते क्यों नहीं”? तब चील उसे जीवितपुत्रिका व्रत करने की सलाह देती है और कहती है कि “पिछली जन्म में जब तुम सीयरिंग थी, तो तुमने कई बार इस व्रत का उल्लंघन किया था, जिसके परिणाम स्वरूप तुम्हारे प्रारब्ध की सजा तुम्हें मिल रही है, यदि तुम अभी स्नान करके और सात्विक भोजन करने के बाद पूरी निष्ठा और धर्म मर्यादा के साथ जीवितपुत्रिका व्रत करो तो तुम्हें भी संतान सुख की प्राप्ति होगी”| यह सुनकर सियारिन इसी वजह से जीवितपुत्रिका व्रत पूरे नियम और धर्मनिष्ठा के साथ करने लगी और उसे सुंदर संतानों की प्राप्ति हुई|

एक ओर प्रचलित कथा जीवितपुत्र वाहन की है| जीव पुत्र वाहन नागराज की कथा ये है कि पुराणों के अनुसार एक बार गरुड़ ने नाग कुमार को निगलने का प्रयास किया जीव पुत्र वाहन ने अपना जीवन त्याग कर नाग कुमार की रक्षा की थी| यह व्रत उसी बलिदान और रक्षा भावना की स्मृति में माताओं द्वारा किया जाता है है| वह यह व्रत माँ के बलिदान को दर्शाता है| साथ ही उसकी पुनर्विष्ठा और घोर तपस्या, उसके प्रेम और संतान के लिए उसकी घनघोर निष्ठा का प्रतीक है| इस व्रत में माताएं पूरा दिन भूखी-प्यासी रहकर गुजारती हैं| वह संतान को अपनी तपस्या और उसके लिए बलिदान का आभास कराता है| किसी भी माँ के त्याग का बखान नहीं किया जा सकता लेकिन इस व्रत की निष्ठा से उसके बच्चे उसकी संतान उसके प्यार को महसूस कर सकते हैं| आज ये व्रत धीरे-धीरे लुप्त होता जा रहा है क्योंकि माताएं अब उतनी ही बलिदानी नहीं रही ना ही बच्चे उस त्याग का समझ पाते| हमें इस तरह की लुप्त होती हुई प्रथा को तथा माँ-बच्चे के इस निस्वार्थ और घनिष्ठ प्रेम का उदाहरण पेश करना चाहिए| यह व्रत उसका परिचायक है|
सभी माताओं को सहृदय प्रणाम|
–Dr. Shipra Dikshit, Assistant Professor, Kuruom School of Advanced Sciences (An Associate Institute of INADS, USA)