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गाँव : देश की धड़कन

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गाँव : देश की धड़कन

Alok Kumar Dwivedi

भारत गाँवों का देश माना जाता है। महात्मा गांधी के इस भाव को उनके वैचारिक अनुयायी आज भी स्वीकार करते हैं। उनके वैचारिकी में भारत का गाँव सुविधाविहीन, अशिक्षित, असंस्कारित एवं दिशाहीन होकर सुशिक्षित, संस्कारयुक्त, संपोष्यभाव को अपनाए हुए तथा जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के सक्षम रूप में उपस्थित होता है। सामान्यतः ऐसा माना जाता है की वर्तमान तकनीकी एवं वैज्ञानिक युग में ग्रामीण व्यवस्था अप्रासंगिक हो गई है। परंतु यह अर्धसत्य है। आज भी ग्रामीण जीवन शैली उत्तम जीवन दशा का द्योतक है। गाँव की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता वहाँ का आपसी साहचर्यभाव रहा है। साथ मिलकर एक दूसरे के सुख-दुख के भागीदार के रूप में आगे बढ़ने की प्रवृत्ति गाँवों को शहरों से पृथक करती है। शहरी व्यवस्था स्वकेंद्रित होती है जहाँ पर रह रहे लोगों के अपने-अपने सामाजिक स्तर होते हैं। जबकि गाँव में आपको समाजवाद का अनोखा रूप सामने मिलता है जो कि पारिवारिक समाजवाद है। इसके अंतर्गत गाँव के समस्त लोग एक दूसरे को अपने परिवार के रूप में स्वीकार करते हैं। यह सिर्फ स्वीकार करने तक सीमित नहीं वरन उनके आपसी पारिवारिक संबोधन भी होते हैं। जैसे- गाँव में रह रहे लोगों का आपसी संबोधन नाम लेकर नहीं बल्कि चाचा, ताऊ, भाई, बहन, चाची, दादी, बाबा इत्यादि रूप में होता है। यह व्यवस्था जाति के सामाजिक ताने-बाने से ऊपर उठी होती है जहाँ एक ब्राह्मण का लड़का वैश्य या शूद्र के बुजुर्ग को चाचा या बाबा कह कर ही पुकारता है। परंतु शहरी व्यवस्था के प्रभाव से वर्तमान में यह भाव कमजोर होता जा रहा है जिसकी बानगी यह कहानी कहती है।

श्याम जिसकी उम्र अभी 12 या 13 वर्ष है, अधिकांशतः वह अपने बगल में रामलाल (जोकि जाति के आधार पर नाई जाति के हैं) के घर पर ही उनके बच्चों के साथ खेलने में बिताता रहा है। श्याम के पिता पंडित श्रीनिवास गाँव में पुरोहित कर्म के साथ-साथ लोगों को सदाचार की भी शिक्षा दिया करते थे। समय बीतने के साथ-साथ जब श्याम की उम्र 18-19 वर्ष की हुई तो उसे विद्या अध्ययन के लिए शहर में भेजा गया। शहर में चार-पांच वर्ष व्यतीत करने के पश्चात् जब वह अपने गाँव वापस आया तो अब उसे रामलाल के घर जाने तथा उनके बच्चों के साथ बैठकर भोजन करने में थोड़ी सी हिचक महसूस होने लगी। उसे रामलाल को काका कहने में भी हिचक लगती थी क्योंकि गाँव के ग्रामीण लोगों के हाव-भाव उसके शहरी मनोदशा से बिल्कुल उलट दिखाई पड़ते थे। शहरी आबोहवा ने श्याम को अपनी पहचान के लिए यद्यपि सचेत तथा दृढ़ कर दिया था परंतु वह पारिवारिक एवं सामाजिक समाजवाद के अपने ग्रामीण परिवेश से काफी दूर हो चुका था। आज के ग्रामीण एवं शहरी व्यवस्था में यह एक प्रमुख अंतर पाया जाता है किस शहरी परिवेश का व्यक्ति अपनी पहचान को स्वयं तक सीमित कर लेता है जबकि ग्रामीण परिवेश में लोग अपनी पहचान एवं अस्तित्व को अन्य लोगों से जोड़कर देखना पसंद करते हैं।

वर्तमान कोरोना कालखंड में बहुत अधिक मात्रा में लोग शहर से गाँव की तरफ पलायन कर आए। उन सबके समक्ष रोजगार का गहरा संकट आया हुआ है। गाँव की एक विशेषता यह भी रही है कि यहाँ पर जल्दी भूखे न तो कोई सोता है तथा नहीं भूख से किसी की मृत्यु होने दी जाती है। आपसी सहयोग की भावना से लोग एक दूसरे की मदद कर देते हैं। कोरोना के इस दौर में सरकार ने भी लोगों के जीवन को आगे बढ़ाने के लिए भरसक प्रयास किया है। पर अब समय है कि भारत के गाँव को आर्थिक दृष्टि से भी समृद्ध किया जाए जिससे कि लोगों का शहरों की तरफ पलायन कम हो सके। इसके लिए गाँव के लोगों को उनके कौशल से साक्षात्कार कराया जाना आवश्यक है। जिसके अंतर्गत गाँव में ही ऐसे संसाधन उपलब्ध कराने होंगे कि गाँव में उत्पादित वस्तुओं को बाजार मिल सके।

हाटनाव इस दिशा में एक बहुउपयोगी प्रयास है। हाटनाव के अंतर्गत हम सब का प्रयास है कि ग्रामीण लोगों द्वारा उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं के लिए स्थानीय स्तर पर ही बाजार उपलब्ध हो सके। इससे ग्रामीण स्तर की क्षमताओं को प्रकाश में लाने में सहायता होगी तथा वही स्थानीय स्तर पर स्वरोजगार एवं उपलब्ध बाजार के माध्यम से लोग आत्मनिर्भरता के लक्ष्य की ओर अग्रसर होंगे। इस प्रकार वर्तमान तकनीकी युग में हाटनाव, “तकनीक से ग्रामीण आत्मनिर्भरता” अमेरिका के प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक एवं चिंतक प्रोफेसर बलराम सिंह का अनोखा प्रयास है। प्रोफेसर सिंह गांधीजी,  विनोबा भावे तथा नानाजी देशमुख के “ग्रामोदय से राष्ट्रोदय” के विचार से काफी प्रभावित हैं तथा उनका लक्ष्य है कि भारत का गाँव आपसी-सौहार्दय, सामंजस्य, प्रेमपूर्ण भावना के साथ रखते हुए आर्थिक आत्मनिर्भरता के लक्ष्यों को प्राप्त कर सके। यही “ग्रामराज्य से रामराज्य” की सरकार होती संकल्पना है।

Alok Kumar Dwivedi (SRF), Research Scholar, Department of Philosophy      University of Allahabad, & TEAM INADS

 

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