जितिया : माता के समर्पण का संकल्प
श्रीमती अनुजा सिन्हा
जितिया या जीवित्पुत्रिका व्रत हर साल अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को होता है। यह व्रत माताएं अपने बच्चों की दीर्घायु और मंगल कामना के लिए करती हैं। बचपन से मैंने मां को यह व्रत करते देखा है। मेरी दादी और नानी के घर में भी जितनी बहुएं थी, जिनके बच्चे थे वह यह व्रत करती थी । भारत में अन्य जितने व्रत उपवास होते हैं, उन्हीं की तरह इसको भी स्त्रियां जब तक कर सकती हैं, भरसक शक्ति भर, तब तक करती हैं चाहे कितनी भी आयु हो जाए! अलग-अलग प्रांतों और क्षेत्रों में व्रत-पूजा की विधि में कुछ अंतर हो सकता है, लेकिन माताओं का भाव एक ही होता है, अपनी संतान के शुभ की कामना!

जितिया के इस निर्जला व्रत का आरंभ सूर्योदय के पहले होता है। स्त्रियां स्नान करके पूजा-पाठ करती हैं, सूर्योदय के बाद भगवान आदित्य नारायण को अर्घ्य देती हैं। कुछ महिलाएं बीती रात से ही जल ग्रहण करना छोड़ देती हैं, वहीं कुछ महिलाएं सूर्योदय के पहले कुछ हल्का-सा खा लेती हैं।
मेरी मां रात से ही पानी पीना छोड़ देती थी और दिन भर निर्जला रहकर गोधूलि बेला में पुनः स्नान करके पूजा की तैयारी करती थी। सूर्यास्त के बाद बेंत से बनी टोकरी में फल, पकवान, फूल, दूर्वा, हल्दी, दही, पान, सुपारी, सिंदूर इत्यादि से टोकरी में रखकर संकल्प करके जितिया-व्रत कथा का पाठ करती थी और पूजा करने के बाद भरी हुई टोकरी को ऊपर से बांस के पत्तों और फूलों से ढक देती थी और सबसे ऊपर उनकी सबसे बड़ी संतान यानि मेरे बड़े भाई के किसी साफ-सुथरे वस्त्र से टोकरी को ढक देती थी। इसके बाद गंगाजल आदि से फिर कुछ स्तुति करती थी। इसके उपरांत रात भर जागरण किया जाता है और ईश्वर का भजन करते हुए अगले दिन जब अष्टमी की तिथि समाप्त हो जाती है, तब माताएं अपना व्रत समाप्त करती हैं। मेरी मां पानी में तुलसी दल डालकर उसी पानी से अपना व्रत खोलती थी। अष्टमी-तिथि समाप्त होने पर ही व्रत का समापन होता है, इसी कारण से कई बार जितिया का व्रत 40 घंटे से ऊपर का भी हो जाता है।

जितिया, जीवित्पुत्रिका या जीताष्टमी का यह व्रत माताओं के त्याग, संतान के प्रति उनके समर्पण और जीवनभर उनके मंगल के संकल्प को दर्शाता है।
श्रीमती अनुजा सिन्हा, निदेशक, टीसीएन मीडिया









































Dr. Aparna Dhir
आपका लेख अत्यंत सरल भाषा में भारतीय-प्रांतीय संस्कृति को दर्शाता है। मैं यह जानना चाहती थी यदि यह व्रत अष्टमी तिथि को होता है, तो क्या बिहार प्रदेश में अष्टमी तिथि को होने वाले अहोई माता के व्रत को नहीं किया जाता और यदि किया जाता है, तो यह कैसे उससे भिन्न है?
HaatNow
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बहुत सुंदर लेख
by – Prof. Praveen Verma, Prof., School of Life Sciences, JNU
बहुत सुंदर लिखा है!
by – Ms. Usha Lal, Social Activist, Poetess
कभी-कभी मन के अंदर कुछ चलता रहता है| इसी वजह से ऐसा होता है|
बहुत सुंदर लिखा है अनुजा
by – Dr. Kushagra Rajendra, HOD & Associate Professor, Amity University
Dr Abha Agnihotri
मैं उत्तर प्रदेश से हूं और मैंने अपने घर में यह व्रत नहीं देखा है। मेरे लिए यह नया है और सरल अभिव्यंजक भाषा में बहुत जानकारीपूर्ण भी है
धन्यवाद और शुभकामनाएँ – आभा
Shagufa Afzal
Very nice bahut aachchha jankari se bhara lekh
HaatNow
सरल भाषा में आस्था और विश्वास के संकल्प का व्रत आपने भावों की सुंदरतम माला में पिरोया है श्रेष्ठ लेखन
सादर प्रणाम
by – श्री अरविंद भारत, संपादक, अखंड भारत प्रकाशन
अच्छा और सटीक लिखा है
by – Sh. Keshav Bhartiya, Retd. (Indian Army) , Musicologist
बहुत सुंदर
by – Sh. Manish Kumar, MSc., JNU
डॉ शेफालिका वर्मा
बहुत ही सरल एवं सुबोध भाषा में लिखा गया यह आलेख है। जीवित्पुत्रिका व्रत के महत्व को लेखिका ने स्पष्ट किया है जो नहीं जानते इस व्रत को वे भी समझ जाते।
बहुत बहुत बधाई अनुजा इस लेख के लिये। आगे भी लिखती रहो इस तरह के व्रत त्योहार के विषय में,और भी बहुत समस्याएं हैं समाज में जिसकी जरूरत है आज के समय को।
प्रो. (डॉ.) शेफालिका वर्मा, दिल्ली
HaatNow
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सरल, सहज रूप में भारतीय संस्कृति और लोक में मौजूद आस्था को याद करते हुए पुरातन काल से यह पर्व की विधि और कला को अपने शब्दों में सुंदर प्रस्तुति आपने किया है। सारगर्भित आलेख
by – Dr. Rashmi Chaudhary, Historian