जितिया : माता के समर्पण का संकल्प

7 thoughts on “जितिया : माता के समर्पण का संकल्प

  • Dr. Aparna Dhir
    September 14, 2025 at 10:41 pm

    आपका लेख अत्यंत सरल भाषा में भारतीय-प्रांतीय संस्कृति को दर्शाता है। मैं यह जानना चाहती थी यदि यह व्रत अष्टमी तिथि को होता है, तो क्या बिहार प्रदेश में अष्टमी तिथि को होने वाले अहोई माता के व्रत को नहीं किया जाता और यदि किया जाता है, तो यह कैसे उससे भिन्न है?

  • HaatNow
    September 14, 2025 at 11:20 pm

    (Comment received via Wats App)

    बहुत सुंदर लेख
    by – Prof. Praveen Verma, Prof., School of Life Sciences, JNU

    बहुत सुंदर लिखा है!
    by – Ms. Usha Lal, Social Activist, Poetess

    कभी-कभी मन के अंदर कुछ चलता रहता है| इसी वजह से ऐसा होता है|
    बहुत सुंदर लिखा है अनुजा
    by – Dr. Kushagra Rajendra, HOD & Associate Professor, Amity University

  • Dr Abha Agnihotri
    September 15, 2025 at 5:10 am

    मैं उत्तर प्रदेश से हूं और मैंने अपने घर में यह व्रत नहीं देखा है। मेरे लिए यह नया है और सरल अभिव्यंजक भाषा में बहुत जानकारीपूर्ण भी है
    धन्यवाद और शुभकामनाएँ – आभा

  • Shagufa Afzal
    September 15, 2025 at 4:21 pm

    Very nice bahut aachchha jankari se bhara lekh

  • HaatNow
    September 15, 2025 at 11:07 pm

    सरल भाषा में आस्था और विश्वास के संकल्प का व्रत आपने भावों की सुंदरतम माला में पिरोया है श्रेष्ठ लेखन
    सादर प्रणाम
    by – श्री अरविंद भारत, संपादक, अखंड भारत प्रकाशन

    अच्छा और सटीक लिखा है
    by – Sh. Keshav Bhartiya, Retd. (Indian Army) , Musicologist

    बहुत सुंदर
    by – Sh. Manish Kumar, MSc., JNU

    • डॉ शेफालिका वर्मा
      September 16, 2025 at 3:36 am

      बहुत ही सरल एवं सुबोध भाषा में लिखा गया यह आलेख है। जीवित्पुत्रिका व्रत के महत्व को लेखिका ने स्पष्ट किया है जो नहीं जानते इस व्रत को वे भी समझ जाते।
      बहुत बहुत बधाई अनुजा इस लेख के लिये। आगे भी लिखती रहो इस तरह के व्रत त्योहार के विषय में,और भी बहुत समस्याएं हैं समाज में जिसकी जरूरत है आज के समय को।
      प्रो. (डॉ.) शेफालिका वर्मा, दिल्ली

  • HaatNow
    September 16, 2025 at 11:29 pm

    (Comment received via Wats App)

    सरल, सहज रूप में भारतीय संस्कृति और लोक में मौजूद आस्था को याद करते हुए पुरातन काल से यह पर्व की विधि और कला को अपने शब्दों में सुंदर प्रस्तुति आपने किया है। सारगर्भित आलेख
    by – Dr. Rashmi Chaudhary, Historian

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